VEDIC SAAHITY

VEDIC SAAHITY वैदिक साहित्य

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वेद

वैदिक साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ ‘वेद’ हैं। वेद शब्द संस्कृत की ‘विद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है—जानना अथवा ज्ञान प्राप्त करना, वेदों का वर्गीकरण एवं संकलन कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने किया।

मैक्समूलर

मैक्समूलर के अनुसार  द्वैपायन वेदव्यास को वेद पंडित कहा जाता है।

श्रुति

वेदों को श्रुति भी कहा जाता है।

उत्तरवैदिक काल

भारतीय इतिहास का वह काल जिसमें सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यक व उपनिषदों की रचना हुई, उत्तरवैदिक काल कहलाता है।

वेद चार है

वैदिक साहित्य का सबसे बड़ा अंग वेद है, वेद चार है

(1) ऋग्वेद,

(2) सामवेद,

(3) यजुर्वेद,

(4) अथर्ववेद,

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त्रयी

वेदों का प्रथम विभाजन (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद)।

प्रत्येक वेद की अपनी संहिता है तथा प्रत्येक संहिता से सम्बद्ध ‘ब्राह्मण’, ‘आरण्यक’ एवं ‘उपनिषद्’ ग्रन्थ हैं। ये सभी वैदिक ग्रन्थों की श्रेणी में आते हैं।

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ऋग्वेद

भारोपीय (हिन्द-यूरोपीय) भाषाओं में लिखित सबसे प्राचीन ग्रंथ है इसीलिये इसे मानव जाति का प्रथम ग्रंथ माना जाता है, विज्ञानवेद कहलाता है।

ऋग्वेद आकार प्रकार की दृष्टि से सबसे बड़ा, सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।

ऋग्वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रन्थ है, इसमें कुल 10 मण्डल (अध्याय), 1028 सूक्त और 10,580 ऋचाएँ हैं।

प्रथम व दसवां मंडल क्षेपक श्रेणी के है, इसमें दसराज्ञ युद्ध का वर्णन है। ऋग्वेद में सर्वाधिक (250 बार) सूक्त इन्द्र के लिए आये हैं।

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प्रत्येक सूक्त में एक देवता और एक ऋषि का नामोल्लेख मिलता है, इस ग्रन्थ से तत्कालीन भारत की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।

ऋग्वेद के सभी सूक्त एक ही काल के नहीं हैं, इनकी रचना भिन्न-भिन्न कालों में हुई है व इसमें कुछ सूक्त ऐसे भी हैं जिनमें तत्कालीन युद्धों और मानव आचार-विचारों का वर्णन मिलता है।

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असतो मा सद्गमय

असतो मा सद्गमय का ऋग्वेद में उल्लेख है।

सिन्धु

सिन्धु ऋग्वेद में सर्वाधिक वर्णित नदी।

सामवेद

यह मंत्रों का वेद है, यह संगीत वेद कहलाता है, इसका सबसे कम ऐतिहासिक महत्त्व है, इसमें केवल 75 मौलिक मंत्र है।

सामवेद में काव्यात्मक ऋचाओं का संकलन है, सामवेद में 1875 मंत्र हैं,  व इन मन्त्रों में से केवल 75 नये मन्त्र हैं, बाकी सभी ऋग्वेद से लिये गये हैं, इसके मन्त्र यज्ञों में देवताओं की स्तुति के समय गाये जाते थे।

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यजुर्वेद

यज्ञ व अनुष्ठानों से संबंधित वेद है, इसमें 1875 मंत्र हैं व इसकी रचना कुरुक्षेत्र में हुई है।

यजुर्वेद

यजुर्वेद (कर्मकांडों एवं यज्ञानुष्ठानों से संबंधित है) में यज्ञ सम्बन्धित कर्मकाण्ड एवं अनुष्ठान पद्धतियों का संकलन किया गया है,यह गद्य व पद्य रूप में रचित एकमात्र वेद है।

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यजुर्वेद के दो भाग हैं

शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद

इसमें चालीस अध्याय हैं, इसका अन्तिम अध्याय ईशोपनिषद् है, जिसका विषय कर्मकाण्ड न होकर आध्यात्मिक चिन्तन है।

अथर्ववेद

कर्मकाण्ड की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वेद, इसमें 20 मण्डल, 731 सूक्त और 6000 मन्त्र है।

ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना अथर्व ऋषि ने की थी, इस वेद में वर्ण्य विषयों में ब्रह्मज्ञान, धर्म, समाज निष्ठा, ओषधि प्रयोग, शत्रुदमन, रोग निवारण, तन्त्र-मन्त्र, टोना-टोटका, जादू, प्रेतात्मा एवं दुरात्मा, लोक-विश्वास आदि का वर्णन है।

अथर्ववेद के निम्न नाम मिलते हैं – ब्रह्म वेद, क्षत्र वेद, मही वेद, छन्दो वेद और अथर्वागिरस वेद।

अथर्ववेद लोक परंपराओं से सम्बन्धित सूचनाओं का विशाल भंडार है।

 अथर्ववेद में सर्वप्रथम लौकिक विषयों का उल्लेख मिलता है।

अथर्ववेद के अनुसार,, -हमारा राष्ट्र के साथ वैसा ही सम्बन्ध होना चाहिए जैसा माता और पुत्र का होता है।

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वेदांग

वेदों के अर्थ को भलीभांति समझने में वेदांग सहायक होते हैं, इनकी संख्या छ: है-

(1) शिक्षा, (2) व्याकरण,(3) कल्प , (4) छन्द, (5) ज्योतिष, (6) निरुक्त

आरण्यक

आरण्यक ब्राह्मणों का अन्त भाग है, इस नाम से यह स्पष्ट होता है कि इसका एक आध्यात्मिक रहस्यमय रूप है।

शतपथ ब्राह्मण

शतपथ ब्राह्मण में अभिषेक के समय की जाने वाली प्रतिज्ञाओं का उल्लेख मिलता है,  पुनर्जन्म का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में हुआ है।

उपवेद

उपवेद चार हैं (1) आयुर्वेद, (2) धनुर्वेद, (3) गन्धर्ववेद (4) शिल्पवेद

धनुर्वेद

युद्ध कला से सम्बन्धित।

गन्धर्ववेद

संगीत कला से सम्बन्धित।

शिल्पवेद

स्थापत्य कला से सम्बन्धित ।

आयुर्वेद

जीवन विज्ञान से सम्बन्धित ।

सूत्र

वैदिक साहित्य के मूल रूप को बनाये रखने के लिये सूत्र साहित्य की रचना की गई।

सूत्र तीन हैं— (1) श्रोत सूत्र, (2) गृह्य सूत्र, (3) धर्म सूत्र

द्विज

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए सूत्र में प्रयुक्त शब्द।

ब्राह्मण ग्रन्थ

ब्राह्मण ग्रन्थों में वैदिक संहिताओं के मन्त्रों की गद्य में व्याख्या मिलती है, इनमें यज्ञों से सम्बन्धित विविध अनुष्ठानों एवं कर्मकाण्डों का विवेचन किया गया है।

प्रत्येक वेद के अपने ब्राह्मण ग्रन्थ हैं-जैसे

(1) ऋग्वेद के ऐतरेय, कौषीतकी;

(2) सामवेद के पंचविंश, जैमिनीय,

(3) यजुर्वेद के शतपथ, तैत्तिरीय

(4) अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ है।

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आरण्यक ग्रन्थ

ब्राह्मण ग्रन्थों के पश्चात् आरण्यक ग्रन्थों का स्थान है, आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ शब्द से बना है, जिसका तात्पर्य है—वन, उपवन।

आरण्यक ग्रन्थों का प्रतिपादित विषय कर्मकाण्ड न होकर चिंतनप्रधान है, वस्तुतः ज्ञानमार्गी विचारधारा का बीजारोपण इन्हीं ग्रन्थों में दृष्टिगोचर होता है।

आरण्यक प्रमुख ग्रन्थ:-

(1) ऐतरेय आरण्यक, (2) तैत्तिरीय आरण्यक, (3) बृहदारण्यक (4) छान्दोग्य आरण्यक

उपनिषद्

आरण्यक ग्रन्थों के पश्चात् उपनिषदों की रचना हुई, ये ग्रन्थ दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिन्तन के ग्रन्थ हैं।

वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग होने के कारण इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है, इन ग्रन्थों में ब्रह्मज्ञान अथवा आत्मज्ञान की विशद् चर्चा है। अनेक उपनिषदों में बारह उपनिषदों को प्रमुख माना गया है।

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बारह प्रमुख उपनिषद:-

(1) ईश, (2) केन, (3) कठ, (4) प्रश्न, (5) मुण्डक, (6) माण्डूक्य, (7) तैत्तिरीय, (8) ऐतरेय, (9) छान्दोग्य, (10) बृहदारण्यक, (11) कौषीतकी (12) श्वेताश्वतर।

उत्तरवैदिक दर्शन
दर्शनप्रवर्तकमूलग्रन्थ
न्याय दर्शनगौतमन्याय सूत्र
वैशेषिक दर्शनकणादवैशेषिक सूत्र
सांख्य दर्शनकपिलसांख्य सूत्र
योगदर्शनपतन्जलियोगसूत्र
मीमांसाजैमिनीपूर्वमीमांसा सूत्र
उत्तर मीमांसाबादरायणवेदान्तसूत्र

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