MANDALGARH FORT BHILWARA

MANDALGARH FORT BHILWARA माण्डलगढ़ दुर्ग भीलवाड़ा

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History of Mandalgarh Fort मांडलगढ़ के किले का इतिहास

यह दुर्ग बनास बेडच मेनाल के संगम पर है।

यह गिरीदुर्ग को श्रेणी में है।

इसका निर्माण माण्डिया भील ने करवाया जबकि हीरानंद ओझा के अनुसार इसका निर्माण चौहानों ने करवाया था।

वर्तमान दुर्ग का निर्माण 12वीं सदी में चौहानों ने करवाया।

माण्डलगढ़ दुर्ग में स्थित जल कुण्ड

इस दुर्ग में सागर, सागरी, जलेश्वर, देवसागर, नामक जल कुण्ड हैं।

माण्डलगढ़ दुर्ग में प्रवेश द्वार

इस दुर्ग में सात प्रवेश द्वार हैं।

माण्डलगढ़ दुर्ग में स्थित मन्दिर

इस दुर्ग में चारभुजा मन्दिर, अण्डेश्वर मन्दिर, चामुण्डा माता मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, ऋषभदेव मन्दिर,

माण्डलगढ़ दुर्ग में स्थित महल

इस दुर्ग में रामसिंह राठौड़ के महल, रूपसिंह के महल मोरध्वज के महल, नेताजी का महल, कचहरी भवन, तोपखाना, गुरुजी का बाड़ा स्थित है।

यह दुर्ग सिद्ध योगियों का केन्द्र है।

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मांडलगढ़ के किले का इतिहास

मांडलगढ़ का किला जिस स्थान पर स्थित है वह राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की एक पंचायत समिति हैं. इसकी जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान ऐतिहासिक महत्व का रहा हैं

12 वीं सदी में जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वी राज चौहान को हराया तब चौहानों से मांडलगढ़ का दुर्ग मुस्लिमों के अधिकार में आ गया।

मुसलमानों से मांडलगढ़ का दुर्ग देवीसिंह हाड़ा ने छीन लिया।

एकलिंग शिलालेख (1488 ई.) व श्रृंगी ऋषि शिलालेख (1482 के अनुसार हाड़ाओं के से मांडलगढ़ का दुर्ग मेवाड़ के क्षेत्रसिंह (1364-82 ई.) ने छीन लिया।

1396 ई. में मुजफ्फरशाह (गुजरात) ने मांडलगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

एकलिंग महात्म्य (कान्हड़व्यास) के अनुसार मांडलगढ़ दुर्ग को राणा कुम्भा (1433-68 ई.) ने लीला से जीता था।

कुम्भा के समय इस दुर्ग पर सुल्तान कुतुबद्दीन (गुजरात), सुल्तान महमूद (मालवा) ने 1446 ई. में इस पर आक्रमण किया, लेकिन असफल रहे।

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राणा रायमल के समय (1473-1509 ई.) गयासुद्दीन ने मांडलगढ़ दुर्ग पर

आक्रमण किया लेकिन सफलता नहीं मिली।

अकबर के समय (1556-1605 ई.) मांडलगढ़ का दुर्ग कुछ समय मुगलों के अधिकार में रहा। 1567 ई. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण करने से पहले इस दुर्ग पर अधिकार किया।

1576 ई. हल्दी घाटी युद्ध की योजना मानसिंह प्रथम (आमेर) ने मांडलगढ़ का दुर्ग में ही बनाई थी।

जगननाथ कछुआ व राव खंगार राणा प्रताप से लड

मांडलगढ़ दुर्ग में जगननाथ कछुआ व राव खंगार राणा प्रताप से लड़ते हुए इस दुर्ग के पास पुरामण्डल में मारे गये, जिनके यहाँ स्मारक बने हुए हैं।

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मांडलगढ़ का दुर्ग 1654 ई. में शहाजहाँ ने किशनगढ़ के महाराजा रूपसिंह को जागीर में दिया।

1658 ई. में मेवाड़ राणा राजसिंह ने रुपसिंह के सेनापति राघवसिंह को

हराकर मांडलगढ़ दुर्ग पर अधिकार किया।

मांडलगढ़ दुर्ग पर 1679 ई. में औरंगजेब ने अधिकार कर लिया।

1681 ई. में औरंगजेब के पुत्र अकबर के साथ मिलकर मेवाड़ राणाओं ने माण्डलगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

मांडलगढ़ के दुर्ग को 1700 ई. में औरंगजेब ने जुझारसिंह राठौड़ (पीसांगन का जागीरदार) को दिया।

1706 ई. में राणा अमरसिंह ने पुनः माण्डलगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

राणा जगतसिंह द्वितीय ने मांडलगढ़ का दुर्ग शाहपुरा उम्मेदसिंह को जागीर में दिया।

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