Electricity

Electricity बिजली

विद्युत धारा(Electric current)

आवेश इलेक्ट्रॉन (Electron) ऋण आवेशित चालक से धन आवेशित चालक की ओर गति करते हैं। आवेश इलेक्ट्रॉन (Electron)के गति की अवस्था को ही विद्युत धारा (I) कहते हैं अर्थात् विद्युत परिपथ में आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। विद्युत धारा का मात्रक एम्पियर होता है।

 विद्युत विभव(Electric potential)

विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर विद्युत विभव का मान एकांक धन आवेश को अनन्त से उस बिन्दु तक लाने में विद्युत क्षेत्र द्वारा आरोपित बल के विरुद्ध किये गये कार्य के बराबर होता है। विद्युत विभव का मात्रक ‘वोल्ट'(Volt) होता है।

 विभवान्तर(Potential difference)

विद्युत क्षेत्र में किसी एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक एकांक धन आवेश को बिना त्वरित किये ले जाने के लिए जितना कार्य करना पड़ता है, वह उन दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर है। विभवान्तर का मात्रक भी ‘वोल्ट'(Volt)  है।

 अमीटर(Ammeter)

 वोल्टमीटर(Voltmeter)

विद्युत परिपथ में चालक के दो सिरों के बीच या दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर नापने के लिए जिस उपकरण को काम में लिया जाता है, उसे वोल्टमीटर कहते हैं। वोल्टमीटर को सदैव चालक के समान्तर क्रम में लगाते हैं। आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होता है।

धारा नियंत्रक(Current controller)

यह उपकरण विद्युत परिपथ में धारा की प्रबलता कम अथवा अधिक करने के काम आता है। इसमें ऑक्सीकृत नाइक्रोम का तार एक चीनी मिट्टी के खोखले बेलन पर लिपटा रहता है, जिसके फेरे एक दूसरे से पृथक्कित होते हैं।

ओम का नियम(Rules Of OM)

यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे ताप, अनुप्रस्थकाट, लम्बाई आदि) में परिवर्तन न हो तो चालक के सिरों का विभवान्तर उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।

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चुंकि V समानुपाती  या V = IR या R =V/I

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 यहाँ R चालक का प्रतिरोध कहलाता है जिसका मान चालक के आकार, ताप तथा पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। प्रतिरोध का मात्रक ओम (Ω) होता है अत: 1 ओम = 1 जूल/1 कूलाम अर्थात् यदि 1 ओम प्रतिरोध वाले चालक तार में 1 एम्पियर धारा प्रवाहित की जाए तो उसके सिरों का विभवान्तर 1 वोल्ट होगा।

प्रतिरोध एवं इसकी निर्भरता –

(1)  लम्बाई पर निर्भरता

चालक तार की लम्बाई बढ़ाने पर प्रतिरोध बढ़ता है ।

(2) अनुप्रस्थ काट पर निर्भरता

चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात् मोटे तार का प्रतिरोध कम व पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है।

(3) ताप का प्रभाव

किसी चालक तार का प्रतिरोध ताप वृद्धि से बढ़ता है परन्तु अर्द्धचालकों का प्रतिरोध ताप बढ़ाने से घटता है जैसे जर्मेनियम, सिलीकॉन व कार्बन आदि। कुछ धातुओं एवं यौगिकों में ताप कम करते जाने पर प्रतिरोध अचानक किसी ताप पर शून्य हो जाता है, यह स्थिति अतिचालकता कहलाती है।

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 विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता

 एक मीटर लम्बे और 1 वर्गमीटर अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले चालक तार के प्रतिरोध को उस पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता कहते हैं। विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम ×मीटर होता है।

 प्रतिरोधकता पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करती है।

सेल

वे साधन जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित करने के काम आते हैं, सेल कहलाते हैं। सेल विद्युत ऊर्जा का स्त्रोत होता है, जिसे परिपथ में लगाकर विद्युत धारा प्राप्त की जा सकती है।

 सेलो के प्रकार

 सेल दो प्रकार के होते हैं-

(1) प्राथमिक सेल  (2) द्वितीयक सेल अथवा संचायक सेल

 प्राथमिक सेल

वे सेल जिनमें रासायनिक ऊर्जा सीधे ही विद्युत ऊर्जा में बदलती है। इन सेलों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ उत्क्रमणीय नहीं होती हैं अर्थात् ऊर्जा का रुपान्तरण एक बार ही होता है। इनमें मुख्यतः

बोल्टिक सेल, लेक्लांशी सेल, सूखा सेल, डेनियल सेल आदि हैं।

 शुष्क सेल

इस सेल में जस्ते का बेलनाकार बर्तन ऋण इलेक्ट्रोड (कैथोड) का तथा कार्बन की छड़ धन इलेक्ट्रोड (एनोड) का कार्य करती है। इसमें अमोनियम क्लोराइड, मैंगनीज डाई आक्साइड, प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा ग्रेफाइट के मिश्रण की गाढ़ी लेई भरी रहती है। इस सेल का विद्युत वाहक बल 1.5 वोल्ट होता है।

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द्वितीयक सेल

द्वितीयक या संचायक सेल उन सेलों को कहते हैं जिनमें जब बाह्य स्त्रोत से धारा प्रवाहित की जाती है तब विद्युत ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहित हो जाती है तथा जब इस सेल से किसी परिपथ में धारा प्रवाहित की जाए तो रासायनिक ऊर्जा पुनः विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इन सेलों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाऐं उत्क्रमणीय होती है, अतः इनको उत्क्रमणीय सेल भी कहते हैं। द्वितीयक सेल दो प्रकार के होते हैं –

सीसा संचायक सेल

सीसा संचायक सेल में सीसे की दो पट्टियों पर लिथार्ज (Pbo) का लेप चढ़ा होता हैं। ये दोनों पट्टियाँ गन्धक के तनु अम्ल में डूबी रहती है। इन सेलों को बार बार पुनः आवेशित किया जा सकता है।

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