Gagron Fort in Hindi

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Gagron Fort in Hindi गागरोण का दुर्ग, (जल दुर्ग) झालावाड़

कालीसिंध व आहू नदी के संगम स्थल ‘सामेलणी’ पर स्थित यह किला ‘जलदुर्ग’ की श्रेणी में आता है। इसे क़ालीसिंध व आहू(दोनों चम्बल की सहायक नदियाँ है) ने तीन तरफ से घेर रखा है। एक सुरंग के द्वारा नदी का पानी दुर्ग के भीतर पहुँचाया गया है।

किले का नामगागरोण का किला, धूलरगढ़,डोडगढ़
स्थानझालावाड़
निर्माताडोड परमारों (बीजलदेव) द्वारा
निर्माण का समय11 वीं शताब्दी में
किले की श्रेणीजल दुर्ग
विशेषताअचलदास खींची की वीरता (1423ई. ) के लिए विख्यात दो साके हुए

गागरोण के किले का निर्माण

गागरोण दुर्ग का निर्माण 11 वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा करवाया गया था। उनके नाम पर यह डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहलाया। तत्पश्चात् यह दुर्ग खींची चौहानों के अधिकार में आ गया।

खींची राजवंश का संस्थापक देवनसिंह खींचीं

‘चौहान कुल कल्पद्रुम’ के अनुसार गागरोण के खींचीं राजवंश का संस्थापक देवनसिंह (उर्फ धारू) था, जिसने बीजलदेव नामक डोड शासक को (जो उसका बहनोई था) मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्व में उसका नाम गागरोण रखा।

अचलदास खींचीं

गागरोण दुर्ग का सर्वाधिक ख्यातनाम और पराक्रमी शासक अचलदास खींचीं हुआ, जिसके शासनकाल में गागरोण का पहला साका हुआ।

गागरोण का प्रथम साका

सन् 1423 में मांडू के सुल्तान अलपखाँ गोरी (उर्फ होशंगशाह) ने एक विशाल सेना के साथ गागरोण पर आक्रमण किया। इस युद्ध में अचलदास खींची ने शत्रु से जूझते हुए वीरगति प्राप्त की। इस युद्ध को कथानक बना शिवदास गाढ़ण ने अपने ग्रन्थ “अचलदास खींचीं री वचनिका” में वर्णन किया है इस घटना के कारण ही यह दुर्ग प्रसिद्ध है

गागरोण का द्वितीय साका

1444 ई. में महमूद खलजी ने गागरोण पर एक विशाल सेना के साथ जोरदार आक्रमण किया। तब गागरोण का दूसरा साका हुआ।

विजय की कोई आशा न देख अचलदास खींचीं का पुत्र पाल्हणसी पलायन कर गया। विजयी सुल्तान ने उसका नाम ‘मुस्तफाबाद’ रखा।

अकबर ने गागरोण दुर्ग पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया।

विद्वानों का अनुमान है कि इस पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ “वेलि क्रिसन रूक्मणी री,, गागरोण में रहकर लिखा।

जालिमकोट

जालिमसिंह झाला ने गागरोण के किले की मराठों, पिण्डारियों तथा अन्य संभावित आक्रान्ताओं से सुरक्षा के लिए एक विशाल परकोटे का निर्माण करवाया, जो उन्हीं के नाम पर जालिमकोट कहलाता है।

इसकी विशाल सुदृढ़ बुर्जों में रामबुर्ज और ध्वजबुर्ज उल्लेखनीय हैं। यह राजपूताना और मालवा की सीमा पर स्थित था। अब यह झालावाड़ जिले में स्थित है।

 गागरोण दुर्ग में महल एवं मंदिर

इस दुर्ग में विशाल जौहर कुण्ड, राजा अचलदास और उनकी रानियों के महल, बारूद खाना, मधुसूदन और शीतला माता के मंदिर प्रमुख है।

इस दुर्ग में कोटा राज्य के सिक्के ढालने की टकसाल भी स्थापित की गयी थी।

गागरोण दुर्ग के भीतर शत्रु पर पत्थरों की वर्षा करने वाला विशाल यन्त्र आज भी विद्ध्मान है  

गागरोण दुर्ग में दरगाह एवं  बुलंद दरवाजा

संत पीपा की छतरी, सूफी संत मीठे साहब (संत हमीदुद्दीन चिश्ती) की दरगाह तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा भी इसी दुर्ग में स्थित हैं।

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