हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
आइये आज हम रणथम्भौर के महान शासक हम्मीर देव चौहान के बारें में अध्ययन करेंगे
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हम्मीर देव चौहान का राज्य रोहण
रणथम्भौर के चौहानों का इतिहास वास्तविक रूप में हम्मीर देव चौहान की गौरवमयी कीर्ति से सुशोभित हुआ। हम्मीर देव जैत्रसिंह (जयसिम्भा) चौहान का तीसरा पुत्र था। संभवतः सभी पुत्रों में श्रेष्ठ होने के कारणजयसिम्भा (जैत्रसिंह) ने उसका राज्यारोहण उत्सव 1282 ई. में अपने जीवनकाल में ही सम्पन्न कर दिया था। नयनचंद्र सूरि द्वारा रचित हम्मीर महाकाव्य चंद्रशेखर द्वारा रचित “हम्मीर हठ” हम्मीर के बारे में जानने के प्रमुख स्त्रोत है।
हम्मीर देव चौहान की दिग्विजय नीति
राणा हम्मीर देव चौहान ने दिग्विजय की नीति अपनाई मेवाड़ के शासक समर सिंह को परास्त कर उसने अपनी धाक राजस्थान में जमा दी तथा 1288 ई. की दिग्विजय सफल रही और उसने समस्त उत्तर पश्चिम के राजपूत शासकों को जीता। उसने भीमरस के शासक अर्जुन को परास्त कर धार के शासक भोज परमार को परास्त किया। तदन्तर वह उत्तर की ओर चित्तौड़, आबू, वर्धनपुर, पुष्कर, चम्पा होता हुआ स्वदेश लौटा। इस अभियान में त्रिभुवनगरी के शासक ने उसको अधीनता स्वीकार की। इस विजय अभियान से लौटने के बाद हम्मीर ने ‘कोटीयजन’ (अश्वमेघ जैसा ही) का आयोजन किया। जिसका राजपुरोहित ‘विश्वरूपभट्ट’ था।
हम्मीर देव चौहान और जलालुद्दीन खिलजी
दिल्ली सल्तनत काल में 1290 ई. में जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर 02 बार आक्रमण किया पहला
(1) 22 मई 1291 ई.
(2) 1292 ई. में
आक्रमण किया लेकिन हम्मीर को पराजित करने में असफल रहा, 1291 ई. ‘अमीर खुसरो’ एवं बरनी की ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ के अनुसार दुर्ग को जीतने के जलालुद्दीन के समस्त प्रयास असफल रहे। अन्त में सुल्तान ने दुर्ग की घेराबंदी उठाने तथा वापस लौट जाने का फैसला लिया और अपनी सेना को Hukum (हुकुम) दिया। सुल्तान जलालुद्दीन ने कहा कि ‘ऐसे (रणथम्भौर जैसे ) 10 दुर्गों को भी मैं मुसलमान के एक बाल के बराबर महत्त्व नहीं देता (समझता) ।
अमीर खुसरो एवं बरनी, हम्मीर महाकाव्य (नयनचंद्र सूरि), हम्मीर रासो (सारंगधर/जोधराज), हम्मीर हठ (चंद्रशेखर) , सुर्जन चरित्र नामक काव्य अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर संबंधी अभियानों का वर्णन देते हैं। एवं जलालुद्दीन खिलजी के रणथम्भौर के दुर्ग को जीतने के लिए युद्ध अभियानों का वर्णन अमीर खुसरो ने ‘मिफ्ता-उल- फुतूह’ में किया है।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
हम्मीर देव चौहान और अलाउद्दीन खिलजी
सन 1296 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजीअपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दिल्ली का सुल्तान बन गया अलाउद्दीन खिलजी एक साम्राज्यवादी शासक था तो दूसरी ओर हम्मीर देव चौहान भी महत्त्वाकांक्षी शासक था। हम्मीर ने कुल मिलाकर 17 युद्ध लड़े थे जिनमें 16 युद्धों में हम्मीर विजयी रहा। 17वें तथा अंतिम युद्ध में हम्मीर दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की सेना से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ।
रणथम्भौर दुर्ग पर आक्रमण के कारण हम्मीर ने राज कर देना बंद कर दिया था। उसने अलाउद्दीन के मंगोल विद्रोहियों को आश्रय दिया था जिनके नेता मुहम्मदशाह एवं केहब्रू थे। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर विजय को अपनी उत्तरी भारत विजय का एक अंग बनाया। दुर्ग पर आक्रमण के बहाने भी उसे मिल गये। बरनी के अनुसार एक कारण तो यह था कि हम्मीर ने दिल्ली सल्तनत को राज कर देना बन्द कर दिया था।
और दूसरा कारण यह था, कि हम्मीर देव चौहान ने मंगोल विद्रोहियों को आश्रय दे रखा था। ये मंगोल विद्रोही मीर मुहम्मदशाह और केहब्रू के नेतृत्व में जालौर से उलुगखाँ और नुसरतखाँ की टुकड़ी (दल) से भागकर हम्मीर की शरण में आ गये थे। हम्मीर ने तो मुहम्मदशाह को अपने राज्य में ‘जगाना’ नामक स्थान की जागीर भी दी। जब ये विद्रोही हम्मीर के दरबार में चले गये तो सुल्तान ने उसे विद्रोहियों को लौटा देने को लिखा । हम्मीर ने इनको लौटा देना अपनी शान और वंश मर्यादा के विरुद्ध समझा और युद्ध के लिए तैयार हो गया।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
हम्मीर महाकाव्य के अनुसार
जब हम्मीर ने मंगोलों को लौटाने से इंकार कर दिया तो अलाउद्दीन ने 1299 ई. में उलुगखाँ, अलपखाँ और वजीर नुसरतखाँ के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी सेना रणथम्भौर विजय के लिए भेजी। उन्होंने अपनी सेना का पड़ाव बनास के किनारे डाल दिया।
अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने ‘रणथम्भौर की कुंजी’ झाई पर अधिकार कर लिया। ‘हम्मीर महाकाव्य’ ग्रंथ के अनुसार है कि हम्मीर इस समय कोटियज्ञ समाप्त कर ‘मुनिव्रत’ में व्यस्त था। इस कारण स्वयं न जाकर हम्मीर ने अपने दो सैनिक अधिकारियों को, जिनके नाम भीमसिंह और धर्मसिंह थे, शत्रु का मुकाबला करने भेजा। राजपूत सेना ने बनास के किनारे पड़ी हुई अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर हमला बोल दिया।
इस युद्ध में तुर्कों (अलाउद्दीन खिलजी कीसेना) की हार हुई। इस युद्ध को जितने के बाद राजपूत सेना का एक दल, जो धर्मसिंह के नेतृत्व में था, लूट का माल लेकर रणथम्भौर लौट गया और भीमसिंह की टुकड़ी धीरे-धीरे दुर्ग की ओर चली।
अलपखाँ ने लौटती हुई भीमसिंह की फौज पर धावा बोल दिया। हिन्दुवाट घाटी पर घमासान युद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप भीमसिंह और उसके सैकड़ों साथी रणस्थल पर शहीद हो गये। उलुगखाँ ने राजपूतों का उस समय पीछा करना ठीक नहीं समझा, और वह दिल्ली लौट गया।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
इस युद्ध की रणथम्भौर में प्रतिक्रिया
हम्मीर महाकाव्य व डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार जब भीमसिंह की मृत्यु के समाचार का पता हम्मीर को चला तो उसे बड़ा दु:ख हुआ। उसने धर्मसिंह को भीमसिंह की मृत्यु का उत्तरदायी ठहराया और उसे अन्धा कर दिया। उसके पद पर उसके भाई भोज को नियुक्त किया। भोज उस समय की बिगड़ी हुई स्थिति को न सँभाल सका।
धर्मसिंह ने ऐसे समय में हम्मीर को धन-संग्रह करने का आश्वासन दिलाया, यदि उसे इस संबंध में अधिकार दिये जाएँ। धर्मसिंह, जिसके हृदय में अपने अपमान का बदला लेने की भावना छिपी हुई थी, राज्य का सर्वेसर्वा बन गया। उसने लोगों पर कई कर लगा दिये और बलात् उनसे धन-संग्रह करने लगा।
इस नीति से हम्मीर की प्रजा में असन्तोष बढ़ गया। हम्मीर ने दण्डनायक के पद पर रतिपाल को नियुक्त किया जो उपयुक्त व्यक्ति नहीं था। भोजराज हम्मीर द्वारा अपनी सेवा से निकाले जाने पर नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में चला गया। उसने सुल्तान को रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए उकसाना प्रारम्भ कर दिया।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan

उलुगखाँ का विफल प्रयत्न
जब अलाउद्दीन को इस पराभव का पता चला तो उसने एक बड़ी सुसज्जित सेना रणथम्भौर पर आक्रमण करने के लिए भेजी जिसका नेतृत्व उलुगखाँ और नुसरतखाँ को सौंपा गया। इस बार खिलजी सेनाध्यक्ष हिन्दुवाट से निकल कर झाईन नामक स्थान लेने में सफल हो गया। झाईन जीत लेने के बाद उलूग खां ने अलाउद्दीन खिलजी का संदेश मेहलनसी नामक दूत के साथ हम्मीर के पास पुनः भिजवाया।
इस संदेश में दोनों विद्रोहियों- मुहम्मदशाह व उसके भाई कैहब्रु को सौंपने के साथ हम्मीर की बेटी देवलदी का विवाह सुल्तान के साथ करने की मांग की गई थी। उलूग खां ने रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डालकर उसके चारों तरफ पाशिब व गरगच बनवाये और मगरबों द्वारा दुर्ग रक्षकों पर पत्थरों की बौछार की।
दुर्ग में भी, ठिकुलिया व मर्कटी यंत्र नामक पत्थर बरसाने वाले यंत्र, भैरव यंत्र लगे थे इन यंत्रों के द्वारा फेका गया एक पत्थर संयोग से नुसरत खां को लगा गया इस कारण से नुसरतखां इसमें घायल हुआ और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना से तुर्क सेना में आतंक छा गया और वह झाईन तक फिर पीछे हट गयी।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
अलाउद्दीन का आना और दुर्ग का पतन
ज्योंही अलाउद्दीन को इस स्थिति का पता चला तो वह एक बड़ी सेना लेकर घटनास्थल पर उपस्थित हुआ। याहिया बिन सरहिन्दी के अनुसार हम्मीर के पास 12000 घुड़सवार, हजारों पदाति तथा अनेक हाथी थे। अमीर खुसरो के अनुसार हम्मीर के पास 10000 घुड़सवार थे। अमीर खुसरो ने अपनी रचना ‘खजाईन-उल-फुतुह’ में इस अभियान का आंखों देखा वर्णन करते हुए लिखा है कि सुल्तान ने इस आक्रमण में पाशेब, मगरबी व अर्रदा की सहायता ली।
अलाउद्दीन ने लगभग एक वर्ष तक रणथम्भौर दुर्ग में घेरा डाल रखा, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। अंत में उसने कूटनीति द्वारा काम लिया। अलाउद्दीन ने हम्मीर के सेनापति रतिपाल, सेनानायक रणमल तथा एक अधिकारी सर्जुनशाह को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया। हम्मीर के सेनानायक रतिपाल और अलाउद्दीन में सन्धि वार्ता चली। सुल्तान ने किले को हम्मीर से छीनकर रतिपाल को देने का लोभ देकर अपनी ओर ले लिया। रतिपाल जब किले में अन्दर गया तो उसने रणमल को भी अपनी साजिश में मिला लिया।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
रणथम्भौर का प्रथम साका
लम्बा घेरा होने के कारण दुर्ग में खाद्य सामग्री का सर्वथा अभाव हो गया। अमीर खुसरो लिखता है कि दुर्ग में सोने के दो दानों के बदले चावल का दाना भी नसीब नहीं हो रहा था। शत्रु पर अंतिम आक्रमण के लिए जाने से पूर्व राजपूत स्त्रियों ने हम्मीर की ‘रानी रंगदेवी’ के नेतृत्व में जौहर की चिता में प्रवेश किया। यह राजस्थान का प्रथम जौहर माना जाता है। हम्मीर देव की पत्नी रानी रंगदेवी ने रणथम्भौर दुर्ग स्थित पद्मला तालाब में कूदकर जल जौहर किया था।
इतिहासकार इसे राजस्थान का पहला एवं एकमात्र जल जौहर भी मानते हैं । ( राजस्थान पत्रिका 17 नवंबर, 2017 ) इसके बाद राजपूत सैनिकों ने केसरिया धारण कर शत्रु सेना से घमासान युद्ध किया। हम्मीर देव लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। 11 जुलाई, 1301 के दिन रणथम्भौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। इस युद्ध में मीर मुहम्मद शाह भी हम्मीर की तरफ से लड़ते हुए घायल हो गया। इस युद्ध में हम्मीर की हार के उपरान्त दुर्ग की कई इमारतें और मन्दिर तोड़ दिये गये और उस पर उनुगखाँ का कब्जा हो गया। लेखक इसामी के अनुसार इस युद्ध में हम्मीर के परिवार एक भी सदस्य जीवित बन्दी नहीं बनाया जा सका।
अमीर खुसरो इस अभियान में अलाउद्दीन के साथ था। उसने लिखा है कि जब घायल अवस्था में मुहम्मदशाह एवं केहब्रू (मंगोल नेता) को अलाउद्दीन के सामने लाया गया तो वे घावों के दर्द से कराह रहे थे। अलाउद्दीन ने उनसे पूछा कि ‘यदि तुम्हारी चिकित्सा करवा दी जाए और तुम्हें जीवनदान दे दिया जाए तो तुम क्या करोगे? उन्होंने
उत्तर दिया कि सबसे पहले तो हम तुम्हारी हत्या करेंगे उसके बाद हम्मीर देव के किसी वंशज को रणथम्भौर की गद्दी पर बिठाकर उसकी सेवा करेंगे। अलाउद्दीन ने कहा कि काश ये विचार मेरे प्रति होते। अलाउद्दीन ने उन दोनों (मुहम्मदशाह एवं केहब्रू) को हाथी के पैंरों से कुचलवाकर उनकी हत्या करवा दी। बाद में रणमल और रतिपाल को अलाउद्दीन के सामने लाया गया।
अलाउद्दीन ने रणमल और रतिपाल से कहा जब तुम अपने समान धर्म वाले अपने राजा हम्मीर के ही नहीं हुये तो मेरे क्या हो सकते हो। अलाउद्दीन ने उनकी भी हत्या करवा दी। अमीर खुसरो आगे लिखता है कि रणथम्भौर में अलाउद्दीन ने अपनी धर्मान्धता दिखाते हुए मंदिरों, मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया। आगे लिखता है कि कुफ्र का घर इस्लाम का घर हो गया है।
हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) Hammir Dev Chauhan
हम्मीर देव चौहान का मूल्यांकन
हम्मीर के साथ रणथम्भौर के चौहानों का राज्य समाप्त हो गया और दुर्ग दिल्ली सल्तनत का भाग बन गया। इस बात को नहीं भूल सकते कि अलाउद्दीन द्वारा रणथम्भौर के आक्रमण में मंगोलों को शरण देना मुख्य कारण नहीं था। हम्मीर का उन्हें शरण देना कोई राजनीतिक भूल न थी, वरन् एक कर्त्तव्य परायणता थी।
हम्मीर देव चौहान का राजस्थान के इतिहास में सम्मान एक वीर योद्धा के रूप में ही नहीं है परन्तु एक उदार शासक (राजा) के रूप में है। वह विष्णु, शिव, और महावीर के प्रति समान भाव से श्रद्धा रखता था। उसने कोटियज्ञ के सम्पादन के द्वारा अपनी धर्म निष्ठा का परिचय दिया जिससे उसे एक स्थायी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।
विजयादित्य उसका सम्मानित दरबारी कवि तथा राघवदेव उसका गुरु था। भारतीय इतिहास में राणा हम्मीर देव चौहान अपने शरणागत वात्सल्य के उच्च कोटि के आदर्श के लिए जाने जाते रहेंगे। हम्मीर के बारे में प्रसिद्ध है “ तिरिया तेल, हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार।” हम्मीर ने अपने पिता जयसिंह के 32 वर्षों के शासन की याद में रणथम्भौर दुर्ग में 32 खंभों की छतरी बनवाई जिसे न्याय की छतरी’ भी कहते हैं। हम्मीर देव ने अपनी पुत्री पदमला के नाम पर ‘पदमला तालाब’ का निर्माण करवाया।
हम्मीर के दरवार में ‘वीजादित्य’ नामक कवि रहता था। डॉ. दशरथ शर्मा ने लिखा है कि “यदि उसमें (हम्मीर देव में ) कोई दोष भी थे तो वे उसके वीरतापूर्वक लडे गये युद्ध, वंश प्रतिष्ठा की रक्षा तथा मंगोल शरणागतों की रक्षा के सामने नगण्य (नहीं के बराबर है) हो जाते हैं । ” नयनचन्द सूरी की रचना हम्मीर महाकाव्य, व्यास भाण्ड रचित हम्मीरायण, जोधराज रचित हम्मीर रासो, अमृत कैलाश रचित ‘हम्मीर बंधन’ और चन्द्रशेखर द्वारा रचित ‘हम्मीर हठ’ नामक ग्रंथों की रचना इसी हम्मीर को मुख्य पात्र (नायक) बनाकर की गई है ।
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