Kota ke Chauhan (Hada)

Kota ke Chauhan (Hada) कोटा के चौहान

कोटा पूर्व में कोटिया भील के  नियंत्रण में था ,  कोटिया भील  के कारण इसका नाम कोटा  पड़ा।

उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार बूंदी के राजा  देवी सिंह  के पुत्र जैत्र सिंह  ने ईसवी सन् 1264 में चम्बल के पूर्वी किनारे पर कोटिया भील को मारकर  इस भू-भाग को अपने अधिकार में लिया था और भील शासक के नाम पर इस स्थान का नाम कोटाह (कोटा) रखा।

समरसिंह

देवीसिंह के पुत्र समरसिंह ने कोटिया शाखा के भीलों से संघर्ष किया। उसने अपने पुत्र जैन्नसिंह को नवविजित भाग, जो कोटा का भाग था, दे दिया।

1274 ई. में इस तरह हाड़ौती में कोटा एक राजधनी के रूप में बना, परन्तु वह बूंदी राज्य के अंतर्गत था। यहाँ दुर्ग का निर्माण भी करवाया।

माधोसिंह

माधोसिंह ने बंदी शाहजादे खुर्रम के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया तथा अंतिम समय में बंदीगृह से गुप्त रूप से मुक्त किया।

Kota ke Chauhan (Hada) कोटा के चौहान

Kota ke Chauhan (Hada)
Kota ke Chauhan (Hada)

इसे शाहजादे खुर्रम ने बहुत बड़ा एहसान माना। जब खुर्रम मुगल सम्राट बना तो उसने माधोसिंह हाड़ा के नाम से कोटा राज्य का फरमान जारी कर दिया।

1631 ई. में राव रतनसिंह की मृत्यु के बाद माधोसिंह को पृथक् रूप से कोटा का शासक स्वीकार कर लिया। माधोसिंह ने मुगल सेवा में अपना बहुत योगदान दिया ।

 झाला जालिमसिंह

1817 ई. में कोटा के शासक राव उम्मेदसिंह के समय जालिमसिंह झाला कोटा राज्य का प्रशासक था।

उसी ने सर्वप्रथम अंग्रेजों से 1817 ई. में सहायक संधि की जिसकी पूरक धारा के अनुसार महाराव उम्मेदसिंह के ज्येष्ठ पुत्र एवं उसके वंशज कोटा के शासक होंगे तथा जालिमसिंह झाला एवं उसके वंशज कोटा राज्य के प्रशासक होंगे।

1762 से 1768 ई. तक झाला जालिमसिंह कोटा से हटा दिये गये। तब ये उदयपुर की सेवा में रहे।

जालिमसिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर उदयपुर महाराणा ने इन्हें ‘राजराणा’ की उपाधि से सम्मानित किया व जागीर दी।

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