Kumbhalgarh Fort in Hindi

Kumbhalgarh Fort in Hindi

कुम्भलगढ़ दुर्ग (एस्ट्रकन), (गिरि दुर्ग) राजसमंद

किले का नामकुम्भलगढ़ दुर्ग
स्थानकुम्भलगढ़ (राजसमंद)
निर्माताराणा कुम्भा
निर्माण का समय1448-58 ई.
किले की श्रेणीगिरी दुर्ग
विशेषतामेवाड़ की संकटकालीन राजधानी

कुम्भलगढ़ दुर्ग का सामरिक महत्व

कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान का चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण दुर्ग है। महाराणा कुम्भा द्वारा दुर्ग स्थापत्य के प्राचीन भारतीय मापदंडों के अनुरूप निर्मित कुम्भलगढ़ गिरि दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गाँव के समीप स्थित कुम्भलगढ़ का सतत् युद्ध और संघर्ष के काल में विशेष सामरिक महत्व था।

अनेक दुर्गों के निर्माता महाराणा कुम्भा ने गोड़वाड़ क्षेत्र की सुरक्षा के लिए इस विकट दुर्ग का निर्माण करवाया था।

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कुम्भलगढ़ दुर्ग मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी

दुर्गम घाटियों से परिवेष्टित तथा सघन और बीहड़ वन से आवृत्त कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग समुद्रतल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है  फिर भी यह किला हरी भरी वादियों के कारण कुम्भलगढ़ दुर्ग दूर से दिखाई  नहीं देता है।

यह अविजित दुर्गों की श्रेणी में आता है। यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से सुरक्षित घिरा हुआ है। जो सैनिक उपयोगिता और निवास की आवश्यकता की पूर्ति करता था।

कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण एवं शिल्पकार

कुम्भलगढ़ दुर्ग को प्राचीन किले के ध्वंसावशेषों पर 1448 ई. में बनवाना आरम्भ किया था जिसका निर्माण  1458 ई. में हो पाया था । कुम्भलगढ़ दुर्ग का प्रमुख शिल्पी (Craftsman) मण्डन था।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के नौ द्वार

कुम्भलगढ़ दुर्ग को ‘कुंभलमेर या कुंभलमेरु’ भी कहते हैं। इस पर चढ़ने के लिये गोल घुमावदार रास्ता तय करना पड़ता है तथा एक-एक करके 1. ओरठ पोल(orth pole) 2. हल्ला पोल (halla pole) 3. हनुमान पोल (Hanuman Pol) 4. विजय पोल (Vijay Pol) 5. भैरव पोल (Bhairav Pol) 6. नींबू पोल (Neemboo pol) 7. चौगान पोल (Chaugan Pol) 8. पागड़ा पोल (Pagda pole) 9. गणेश पोल(Ganesh Pol) नामक कुल नौ द्वार पार करने पड़ते हैं।

भारत की महान दीवार

कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड में दर्ज है। यह चीन की महान् दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महान् दीवार है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के परकोटे की सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि इस पर एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते है इसलिये इसे भारत की महान दीवार भी कहा जाता है।

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति

कुम्भलगढ़ दुर्ग कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों को मिलाकर बनाया गया है। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में इन पहाड़ियों का नाम नील, श्वेत, हेमकूट, निषाद, हिमवत्, गन्धमादन आदि दिए गए हैं।

जैन राजा सम्प्रति

कुम्भलगढ़ दुर्ग समुद्र के तल (Sea surface) से 3,568 (तीन हजार पांच सौ अडसट ) फीट ऊँचे पहाड़ पर है। वैसे तो इस कुम्भलगढ़ दुर्ग का व्यवस्थित रूप से निर्माण कुम्भा ने करवाया था ।

परन्तु एक मान्यतानुसार प्रारम्भ में कुम्भलगढ़ दुर्ग के निर्माण से पूर्व एक जैन राजा सम्प्रति (तीसरी शताब्दी ईसा) ने इस दुर्ग को बनवाया था। यहाँ के खण्डहरों से मिलने वाले मन्दिरों के अवशेष (Ruins of temples) इसकी प्राचीनता प्रमाणित करते हैं।

प्राचीन यज्ञ स्मृति

कुम्भलगढ़ दुर्ग में उल्लेखनीय प्रतीक ‘वेदी’ है। वेदी अपने आप में एक दुमंजिला भवन है। जिसके ऊँचे गुम्बज के नीचे से धुआँ निकलने के लिए चारों ओर भाग है और साथ ही साथ होताओं (यज्ञ संपादन कर्त्ताओं) तथा दर्शकों के बैठने की अच्छी व्यवस्था है। राजस्थान में इस प्रकार की वेदी कुम्भलगढ़ में प्राचीन यज्ञ स्मृति के अवशेष के रूप में बची है।

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एस्ट्रकन

कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ दुर्ग की तुलना सुदृढ प्राचीरों एवं  बुज और  कँगूरों के कारण इसकी तुलना  ‘एस्ट्रकन’ से की है और कुम्भलगढ़ दुर्ग का अच्छा वर्णन किया है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग में मन्दिर

कुम्भलगढ़ दुर्ग के अन्दर की ओर 960 के लगभग मन्दिर बने हुए हैं। दुर्ग के कैम्पस में झालीबाव बावड़ी, कुम्भस्वामी विष्णु मंदिर, झाली रानी का मालिया, मामादेव तालाब, उड़ना राजकुमार की छतरी (Prithviraj Rathod) आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक बने हुए हैं।

स्वामी भक्त  पन्नाधाय

पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर अपने स्वामी उदयसिंह के प्राण इसी दुर्ग में बचाये। कुम्भलगढ़ दुर्ग में ही उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ।

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महाराणा प्रताप का जन्म स्थल

कुम्भलगढ़ दुर्ग में  राणा प्रताप का जन्म हुआ। इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास है, जिसे ‘कटारगढ़’ कहते हैं। यह ‘बादल महल’ (पैलेस ऑफ क्लाउड) के नाम से प्रसिद्ध है जो महान योद्धा महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म स्थल है।

कटारगढ़

अबुल फजल के अनुसार यदि कोई पगड़ीधारी पुरुष कटारगढ़ की ओर देखे तो उसकी पगड़ी गिर जाएगी। कुंभलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है।

कुम्भलगढ़ दुर्ग के विकट पहाड़ी मार्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग के पर्वतांचल से अनेक विकट पहाड़ी मार्ग या दर्रे मारवाड़, मेवाड़ तथा अन्य स्थानों की ओर गये हैं।

इनमें किले के उत्तर की तरफ पैदल रास्ता टूटया का होड़ा, पूर्व की तरफ हाथिया गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवटा कहलाता है। यह नाल केलवाड़ा के उत्तर से मारवाड़ (Marwar) की ओर गयी है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता टीडाबारी (Tidabari)कहलाता है।

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