LIGHT
LIGHT (प्रकाश)
आइये आज हम प्रकाश के बारें में अध्ययन करते हैं ऊष्मा की भाँति प्रकाश भी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है सूर्य, तारे इत्यादि प्रकाश के प्राकृतिक स्रोत है जबकि मोमबत्ती, लैम्प, टॉर्च, बल्ब इत्यादि प्रकाश के मानव निर्मित्त स्रोत है।
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प्रकाशीय गुण-
प्रकाश का परावर्तन
किसी सतह पर आपतित प्रकाश को उस सतह द्वारा पुनः लौटाने की क्रिया परावर्तन कहलाती है।
प्रकाश का विसरित परावर्तन
खुरदरे पृष्ठों द्वारा प्रकाश को समान रूप से चारों ओर बिखरने के प्रभाव को विसरित परावर्तन कहते हैं ।
प्रकाश का नियमित परावर्तन
किसी भी चिकने पृष्ठ द्वारा आपतित किरण-पुंज के एक विशिष्ट दिशा में पुन: उसी माध्यम में में लौटने को नियमित परावर्तन कहते हैं।
प्रकाश के परावर्तन का नियम
परावर्तित किरण सदैव आपतित किरण तथा आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब के समतल में ही रहती है।
परावर्तित किरण अभिलम्ब के साथ उतना ही कोण बनाती है जितना कोण आपतित किरण अभिलम्ब के साथ बनाती हैं अर्थात् आपतन कोण = परावर्तन कोण
प्रकाश का अपवर्तन
प्रकाश के एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करने पर पृथक्कारी पृष्ठ पर मूल मार्ग से विचलन की प्रक्रिया को अपवर्तन कहते हैं।
प्रकाश का एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर वेग कम या अधिक होने के कारण ही अपवर्तन होता है।
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प्रकाश के अपवर्तन का नियम
अपवर्तित किरण, आपतित किरण व अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं।
आपतन कोण की त्रिज्या व अपवर्तन कोण की त्रिज्या की निष्पत्ति सदैव किन्हीं दो माध्यमों के लिए नियत रहती है। इस राशि को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं।
चूंकि अपवर्तनांक दो राशियों का अनुपात है अतः इसका कोई मात्रक नहीं होता है।
प्रकाश का अपवर्तनांक
माध्यम की प्रकृति, घनत्व एवं प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है।
प्रकाश का अपवर्तन के प्रभाव
(A) पानी के पैदे पर रखे सिक्के का ऊपर उठा हुआ दिखाई देना,
(B) पानी में रखी छड़ का मुड़ा हुआ दिखाई देना,
(C) रात्रि में तारों का टिमटिमाना,
(D) क्षितिज से नीचे होने पर भी सूर्य का दिखना,
(E) मृग मरीचिका आदि।
प्रकाश का क्रांतिक कोण
प्रकाश का किसी भी सघन माध्यम में आपतन कोण के उस चरम मान को जिसका विरल माध्यम में संगत अपवर्तन कोण 90° है, क्रांतिक कोण कहते हैं।
प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन
किसी सघन माध्यम में संचरित होता हुआ प्रकाश विरल माध्यम के प्रथकित पृष्ठ पर क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित हो तो उसका पुनः उसी माध्यम में परावर्तन होता है, इस प्रभाव को पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं।
उदहारण- हीरा पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण अधिक चमकता है।
प्रकाश का दैनिक जीवन में पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के उपयोग।
(i) जल में रखी परखनली का चमकना,
(ii) पूर्ण परावर्तन प्रिज्म,
(iii) प्रकाश तन्तु ।
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प्रकाश का वर्ण विक्षेपण
मिश्रित प्रकाश के विभक्तीकरण की घटना को प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते हैं। यदि निर्गत किरणों को पर्दे पर लिया जाये तो पर्दे पर रंगीन पट्टी दिखाई देती है जिसे स्पैक्ट्रम कहते हैं।
सूर्य के स्पैक्ट्रम में रंगों का क्रम इस प्रकार होता है- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल (अर्थात् बैजानीहपीनाला)
दर्पण
समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब
एक समतल दर्पण में किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब उसके पीछे तथा उससे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर दर्पण के सामने वस्तु स्थित है। समतल दर्पण में जो प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ते हैं, वे आभासी होते हैं। मनुष्य का पूरा प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई मनुष्य की लम्बाई की आधी होना आवश्यक है।
पार्श्व परिवर्तन
समतल दर्पण में किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब में दांई से बांई तथा बांई से दांई दिशा में अर्थात् प्रतिवर्ती परिवर्तन को पार्श्व परिवर्तन कहते हैं।
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गोलीय दर्पण
यह दो प्रकार (अवतल, उत्तल) के होते हैं। अवतल दर्पणों से प्रतिबिम्ब वास्तविक जबकि उत्तल दर्पण से आभासी प्राप्त होते हैं।
बस के ड्राईवर के साइड में लगा दर्पण उत्तल होता है जिससे पीछे का वाहन आसानी से देखा जा सकता है। मोटर गाड़ियों के आगे की लाइटों में तथा टॉर्च में परवलयिक दर्पणों का उपयोग किया जाता है।
लेन्स
किसी पारदर्शी पदार्थ के ऐसे टुकड़े को जिसके दो पृष्ठ हों जिनमें कम से कम एक पृष्ठ वक्र हो, लेन्स कहते हैं।
लेन्स दो प्रकार के होते हैं।
अभिसारी (उत्तल)
यदि सूर्य अथवा किसी सुदूर स्थित स्रोत से प्रकाश किरणें लेन्स में से अपवर्तित होने के पश्चात् किसी एक स्थान पर मिलती हैं तो इस प्रकार के लेंस को अभिसारी (उत्तल) लेंस कहते हैं। उत्तल लेन्स की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है ।
अपसारी (अवतल)
संचरण के उपरान्त यदि किरणें अपसारित होती हुई प्रतीत हों अर्थात् पीछे की ओर बढ़ाने पर मिलें तो उस प्रकार के लेन्स को अपसारी (अवतल) लेन्स कहते हैं। अवतल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक होती है ।
लेन्स की क्षमता
लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
P=- 1/f डाइआप्टर (f मीटर में है)
उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेन्स की क्षमता ऋणात्मक होती है।
किसी भी लेंस की फोकस दूरी निम्न भौतिक राशियों पर निर्भर करती है –
(i) पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या पर
(ii) बाह्य माध्यम (जिसमें वह स्थित है) के सापेक्ष लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक पर
(iii) प्रकाश के वर्ण (तरंग दैर्ध्य) पर

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मानव नेत्र
आँख की समंजन क्षमता
नेत्र लेन्स की फोकस दूरी उससे सम्बद्ध मांस पेशियों द्वारा आसानी से बदली जा सकती है। मांसपेशियों द्वारा लेन्स की फोकस दूरी को इस प्रकार बदलने की प्रक्रिया को नेत्र की समंजन क्षमता कहते हैं।
दृष्टि परास
स्वस्थ आँख के लिए निकट बिन्दु 25 सेमी पर एवं दूर बिन्दु अनन्त पर होता है। निकटतम तथा दूर बिन्दु के बीच की दूरी को आँख की दृष्टि परास कहते हैं।
दृष्टि दोष
जब किसी नेत्र की समंजन सीमायें 25 सेमी से अनन्त तक नहीं होती हैं तो उस नेत्र को दोषयुक्त नेत्र कहते हैं।
नेत्र में दृष्टि सम्बन्धी मुख्यतः निम्न प्रकार के दोष होते हैं-
(i) निकट दृष्टि दोष
(ii) दूर दृष्टि दोष
(iii) जरा दृष्टि दोष
(iv) दृष्टि वैषम्य
(i)निकट दृष्टि दोष (Myopia)
इस दोष से पीड़ित व्यक्ति पास की वस्तुएँ साफ देख सकता है परन्तु दूर की वस्तुएँ साफ नहीं देख पाता। इस दोष को दूर करने हेतु उचित फोकस दूरी का अवतल लेन्स उपयोग करते हैं।
(ii)दूर दृष्टि दोष (Hypermekopia)
इस दोष में मनुष्य दूर की वस्तुओं को साफ देख सकता है लेकिन पास की वस्तुएँ साफ नहीं देख पाता। इस दोष को दूर करने हेतु उत्तल लैंस का उपयोग किया जाता है।
(iii)जरा दृष्टि दोष
जैसे-जैसे मनुष्य की आयु बढती है मनुष्य को न तो दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं और न ही निकट की, इस दोष को जरा दृष्टि दोष कहते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए द्विफोकसी लेन्स प्रयुक्त किये जाते हैं। जिसका नीचे का भाग उत्तल लेन्स व ऊपरी भाग अवतल लेन्स होता है।
(iv)दृष्टि वैषम्य
इस दोषयुक्त आँख में समान दूरी पर स्थित क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर रेखाओं का एक साथ स्पष्ट प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर नहीं होता है। इस दोष के निवारण हेतु बेलनाकार अथवा गोलीय बेलनाकार लेन्स प्रयुक्त किये जाते हैं।
इन्ट्रा ऑक्यूलर लेन्स
मोतियाबिन्द दूर करने की नई तकनीक में मरीज की आँख में कृत्रिम लेन्स (इन्ट्रा ऑक्यूलर लेन्स) लगाया जाता है।
सूक्ष्मदर्शी
वह यंत्र है जिसके द्वारा हम छोटी वस्तु को बड़ा करके देखते हैं। कम फोकस दूरी का उत्तल लेन्स साधारण सूक्ष्मदर्शी का कार्य करता है।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी
सरल सूक्ष्मदर्शी की अपेक्षा अधिक आवर्धन पाने के लिए संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं। आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए दो उत्तल लेन्स प्रयुक्त करते हैं। एक लेन्स जो वस्तु की ओर होता है उसे अभिदृश्यक लेन्स तथा अन्य लेन्स जो आंख के पास होता है उसे नेत्रिका या अभिनेत्र लेन्स कहते हैं। इसका उपयोग भूगर्भ शास्त्री चट्टानों की संरचना की जाँच करने में, धातुकर्मी क्रिस्टल संरचना का अध्ययन करने में, जीवविज्ञानी जीवाणु एवं जीवित कोशिकाओं के अध्ययन करने में करते हैं।
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दूरदर्शी
दूरस्थ वस्तुओं को आवर्धित करके स्पष्ट देखने के लिए जिस प्रकाशिक यंत्र का उपयोग करते हैं, उसे दूरदर्शी कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
खगोलीय दूरदर्शी- ये आकाशीय पिण्डों को देखने के काम आते हैं। इनमें वस्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है।
भू-दूरदर्शी
ये पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं को देखने के काम आते हैं। इनमें सीधा प्रतिबिम्ब बनता है।
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