MUGHAL EMPIRE DECLINE

MUGHAL EMPIRE DECLINE मुगल साम्राज्य का पतन

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आज हम मुगल साम्राज्य के पतन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे

बहादुरशाह (1707-12 ई.)

 जजाओ का युद्ध

 18 जून 1707 ई. को मुअज्जम की सेनाओं ने आजम को सामूगढ़ के निकट जजाओ के युद्ध में पराजित किया, आजम मारा गया। मुअज्जम (शाहआलम) ‘बहादुरशाह’ की उपाधि के साथ दिल्ली का बादशाह बना। बहादुरशाह 65 वर्ष कीआयु में बादशाह बना।

लोहगढ़ की लड़ाई

लोहगढ़ की लड़ाई में बंदा बहादुर को हराकर सरहिंद पर कब्जा किया। शिवाजी के पोते साहू को मुगल कैद से रिहा किया।

शाह-ए-बेखबर

इतिहासकार खफी खाँ के अनुसार बहादुरशाह शासन कार्यों के प्रति इतना लापरवाह था कि लोग उसे ‘शाहे बेखबर’ कहते थे।

बहादुर शाह की मृत्यु

सिक्ख नेता बंदाबहादुर के विरूद्ध सैन्य अभियान के दौरान 27 फरवरी, 1712 ई. को बहादुर शाह की मृत्यु हो गई।

बहादुरशाह की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार युद्ध

बहादुरशाह की मृत्यु के बाद लड़े गये उत्तराधिकार युद्ध में उसके पुत्रों ने इतनी निर्लज्जता दिखाई कि बहादुरशाह का शव एक माह तक बिना दफनाये पड़ा रहा।

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जहाँदारशाह (1712-13 ई.)

बहादुरशाह का पुत्र, यह अपने भाई अजीम उश-शान, रफी- उश-शान एवं जहान-शाह की हत्या कर मुगल बादशाह बना ।

लम्पट मूर्ख

हाँदारशाह का उपनाम ।

जुल्फिकार खाँ

ईरानी अमीर जुल्फिकार खाँ ने जहाँदार शाह को बादशाह बनने में मदद की। जुल्फिकार खाँ को बादशाह ने अपना वजीर बनाया।

जुल्फिकार खाँ ने जाट शासक चूड़ामन व बुन्देला शासक छत्रसाल के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये किन्तु सिक्खों व बन्दा बहादुर के विरुद्ध दमन की नीति जारी रखी।

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जहाँदार शाह के समय से ही मुगल अमीरों का प्रशासन में हस्तक्षेप

जहाँदार शाह के समय से ही मुगल अमीरों का प्रशासन में हस्तक्षेप शुरू हुआ व बादशाह अमीरों के हाथ के कठपुतली बन गये।

भूराजस्व की वसूली को ठेके पर दिया जाना

वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए जुल्फिकार खाँ ने जागीरों के अंधाधुंध बंटवारे पर रोक लगा दी।

ज़ुल्फिकार खाँ ने भूराजस्व की वसूली को ठेके पर दिये जाने की प्रथा को बढ़ावा दिया।

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जहाँदारशाह द्वारा जजिया कर समाप्त करना

जहाँदारशाह ने 1712 ई. में जजिया कर को समाप्त(ख़त्म) कर दिया।

जुल्फिकार खाँ को फाँसी दिया जाना

फरूखसियर ने जुल्फिकार खाँ को फाँसी दे दी।

सुभागचन्द्र

जुल्फिकार खाँ ने सुभागचन्द्र को दीवान बनाकर राजस्व मामलों का प्रधान बना दिया तथा सुभागचन्द्र को राजा की उपाधि भी दी।

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दक्कन में मराठों को चौथ व सरदेशमुखी की वसूली का अधिकार देना

जहाँदार शाह ने दक्कन में मराठों को चौथ व सरदेशमुखी की वसूली का अधिकार किया।

मिर्जा राजा सवाई सिंह

आमेर के राजा, मिर्जा राजा सवाई सिंह को जहाँदारशाह द्वारा मिर्जा की उपाधि प्रदान करना।

राजा अजीत सिंह

मारवाड़ के राजा, राजा अजीत सिंह को जहाँदारशाह ने महाराजा की उपाधि प्रदान कर गुजरात का सूबेदार बनाया ।

लाल कुंवर(रखैल)

जहाँदार शाह अत्यधिक भ्रष्ट व अनैतिक चरित्र का व्यक्ति था तथा लाल कुंवर नामक एक रखैल का उस पर काफी प्रभाव था ।

जहाँदार शाह की हत्या

जहाँदार शाह को अजीमुश्शान के पुत्र फर्रुखशियर ने हिन्दुस्तानी अमीर सैयद बन्धुओं के सहयोग से अपदस्थ कर दिया। फरूखसियर के आदेश पर जहाँदार शाह की हत्या कर दी। उसने कुल 11 माह का शासन किया।

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फर्रुखशियर (1713-19 ई.)

जहाँदारशाह का भतीजा, यह सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ के सहयोग से बादशाह बना, राज्याभिषेक बिहार में हुआ।

फर्रुखशियर का उपनाम

घृणित कायर।

अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ(सैय्यद बंधु)

फर्रुखशियर द्वारा अब्दुल्ला खाँ को साम्राज्य का वजीर व हुसैन अली को मीर बख्शी नियुक्त किया गया।

ईस्ट इंडिया कम्पनी का मैग्नाकार्टा

एक अंग्रेज डॉक्टर हैमिल्टन ने फर्रुखशियर के एक असाध्य रोग की चिकित्सा की जिससे प्रसन्न होकर 1717 ई. में अंग्रेजों को बिना सीमा शुल्क व्यापार करने की छूट प्रदान की। इसे ईस्ट इंडिया कम्पनी का मैग्नाकार्टा कहा गया।

जजिया कर

फर्रुखशियर ने जजिया कर को समाप्त किया। यद्यपि मुगल शासकों में जजिया कर अंतिम रूप से मुहम्मद शाह रंगीला द्वारा 1720 ई. में हटाया गया।

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ईस्ट इंडिया कम्पनी का महाधिकार पत्र

फर्रुखशियर द्वारा जारी फरमान को कम्पनी का महाधिकार पत्र बताने वाला इतिहासकार ओर्म्स था

सरमन शिष्टमंडल

सरमन शिष्टमंडल मुगल सम्राट फर्रुखशियर के दरबार में 1715 ई. में आया।

बंगाल में व्यापार का एकाधिकार प्राप्त करना

फर्रुखशियर से 3000 रु. वार्षिक कर के बदले बंगाल में व्यापार का एकाधिकार सरमन शिष्टमंडल को प्राप्त हुआ।

दिल्ली की संधि

दिल्ली की संधि हुसैन अली ने पेशवा ‘बालाजी विश्वनाथ’ से 1719 ई. में यह संधि की। इसके तहत् उसने समस्त दक्षिण में चौथ व सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार साहू को दे दिया।

फर्रुखशियर की हत्या

सैय्यद बंधुओं ने फर्रुखशियर को अपदस्थ कर 28 अप्रेल, 1719 ई. को उसकी हत्या कर दी।

तूरानी गुट (मध्य एशियायी मूल)

फर्रुखसियर ने तूरानी गुट (मध्य एशियायी मूल) के अमीर चिनकिलिच खाँ को दक्कन के छः मुगल सूबों का सूबेदार बनाया तथा निजामुल मुल्क और खानखाना की उपाधि दी।

सिक्खों के नेता बन्दा बहादुर की दिल्ली में उसकी निर्मम हत्या

तूरानी गुट के अमीर अब्दुस्समद (लाहौर का गर्वनर) व उसके पुत्र जकारिया खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने सिक्खों के नेता बन्दा बहादुर की गुरदासपुर में परास्त कर 19 जून, 1716 ई. को दिल्ली में उसकी निर्मम हत्या करवा दी।

जोधपुर (मारवाड़) के शासक

फर्रूखसियर द्वारा जोधपुर (मारवाड़) से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना

जोधपुर (मारवाड़) के शासक अजीतसिंह की पुत्री से फर्रूखसियर ने विवाह किया।

सैय्यद बंधु (इतिहास में राजा बनाने वाले)

सैय्यद बन्धुओं का संबंध हिन्दुस्तानी अमीर गुट से था जिसमें विदेशी मूल के भारत में जन्मे मुसलमान थे, उपनाम- सैय्यद बन्धु इतिहास में राजा बनाने वाले‘ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

फर्रूखसियर की मृत्यु के बाद सैय्यद बन्धुओं ने रफी-उश-शान के दो पुत्रों क्रमशः रफी-उद्-दरजात व रफी-उद्-दौला (शाहजहाँ-II) को सम्राट बनाया।

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रफी-उद्-दरजात

रफी-उद्-दरजात, ने 28 फरवरी, 1719 से 4 जून, 1719 तक केवल तीन माह चार दिन के लिए शासन किया।

रफी उद् दरजात सबसे अल्प काल के लिए शासन करने वाला मुगल शासक था।

रफी-उद्-दौला(शाहजहाँ-II)

रफी-उद्-दरजात के पश्चात रफी-उद्-दौला (6 जून, 1719 से 17 सितम्बर,

1719 तक) का शासनकाल रहा। इसने 3 माह 11 दिन तक शासन किया।

सैय्यद बन्धुओं का पतन

सैय्यद बन्धुओं के पतन का कारण तूरानी गुट (निजामुल मुल्क, अमीन खाँ आदि) का अधिक शक्तिशाली होना था ।

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मुहम्मदशाह (1719-48 ई.)

निजामुल मुल्क ने सैय्यद बंधुओं की 1722 ई. में हत्या करवा दी।

रोशन अख्तर

मुहम्मदशाह सैय्यद बन्धुओं के हाथ की कठपुतली था जो ‘’रोशन अख्तर’’ मुहम्मद शाह के नाम से शासक बना।

मुहम्मदशाह के समय उर्दू साहित्य व संगीत का सर्वाधिक विकास

मुहम्मदशाह के शासनकाल में उर्दू साहित्य व संगीत का सर्वाधिक विकास हुआ। सदारंग व अदारंग उसके प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे।

रंगीला मुहम्मदशाह का उपनाम

रंगीला (विलासी आचरण के कारण कहा गया)

वली दकनी

आधुनिक उर्दू शायरी के जन्मदाता, इन्हें मुहम्मद शाह द्वारा सम्मानित किया गया।

निजामुल मुल्क

मुहम्मद शाह ने पहले अमीन खाँ को वजीर बनाया। जनवरी, 1721 में उसकी मृत्यु के बाद 1722 में निजामुल मुल्क को वजीर बनाया ।

शूकरखेड़ा का युद्ध

1724 में निजामुल मुल्क ने मुबारिज खाँ को पराजित किया तथा 1724 ई. में ही स्वतंत्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की।

निजामुल मुल्क के दक्षिण में जाने के बाद क्रमशः कमरूद्दीन (अमीर खाँ का पुत्र), रौशन-उद्-दौला और खाने दौरां को वजीर बनाया गया।

मुहम्मद शाह ने मराठा शासक साहू को दक्कन के छ: प्रान्तों का चौथ एवं सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार दिया। इसके बदले शाहू ने दक्कन में 15,000 घुड़सवारों द्वारा मुगलों को मदद देने का वादा किया।

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नादिरशाह का आक्रमण (1739 ई.)

अवध के नवाब सआदत खाँ ने नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने हेतु बुलाया।

मुहम्मदशाह के काल में ही नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमदशाह अब्दाली ने 1748 ई. में भारत पर आक्रमण किया व मच्छीवाड़ा के समीप मनिपुर में शहजादा अहमद शाह से पराजित हुआ।

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करनाल का युद्ध

मुहम्मद शाह ने नादिरशाह के दूत की जलालाबाद में हत्या करवा दी, जिससे क्रुद्ध होकर ईरान के नेपोलियनके नाम से प्रसिद्ध नादिरशाह ने 1739 में भारत पर आक्रमण किया तथा 13 फरवरी 1739 को ‘करनाल के युद्ध’ में मुगल सेना को पराजित किया।

नादिरशाह द्वारा दिल्ली में भयानक लूटमार व कत्लेआम

नादिरशाह ने 20 मार्च, 1739 ई. को दिल्ली में प्रवेश किया व अगले 57 दिनों तक दिल्ली में भयानक लूटमार व कत्लेआम किया ।

कोहिनूर हीरा

नादिरशाह भारत से शाहजहाँ द्वारा निर्मित मुगल सिंहासन ‘तख्ते- ताऊस’ व विश्व के सबसे महंगे हीरे कोहिनूर को भी ले गया।

दुर्रे-दुर्रानी (युग का मोती)

अहमदशाह अब्दाली को कहा गया है।

अहमदशाह (1748-54 ई.)

मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अहमदशाह 1748 ई. में सम्राट बना ।

कुदासिया बेगम

अहमदशाह ऐश्वर्य प्रिय शासक था एवंम कुदासिया बेगम अहमदशाह की ओर से शासन करती थी।

अहमद शाह अब्दाली

अहमदशाह के समय उत्तर-पश्चिम की ओर से अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण हुए जिन्हें रोकने में यह असमर्थ रहा।

वजीर गाजीउद्दीन

1754 ई. में अहमदशाह के वजीर गाजीउद्दीन ने अहमदशाह को अन्धा बनाकर सलीमगढ़ में कैद कर दिया।

सफदरजंग

अहमदशाह ने सफदरजंग को अवध का सूबेदार नियुक्त किया।

उधमबाई

अहमदशाह के समय राजमाता, इनका प्रशासन में अत्यधिक योगदान रहा। उधमबाई को किबला-ए-आलम की उपाधि प्रदान की गई।

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इमादुलमुल्क(इमान-उल-मुल्क)

इमादुलमुल्क(इमान-उल-मुल्क) ने सफदरजंग को अपदस्थ कर दिया व खुद मुगल साम्राज्य का वजीर बना।

इमादुल मुल्क

वजीर इमादुल मुल्क ने मराठों के सहयोग से अहमदशाह को 2 जून, 1754 ई. को अपदस्थ कर “आलमगीर द्वितीय की उपाधि” के साथ अजीजुद्दीन को मुगल बादशाह बनाया।

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आलमगीर द्वितीय (1754-59 ई.)

आलमगीर द्वितीयके शासनकाल में मुगल साम्राज्य की सीमा दिल्ली के आसपास तक सीमित रह गयी।

अहमदशाह अब्दाली का भारत पर चौथा आक्रमण

अहमदशाह अब्दाली ने 1756 ई. में भारत पर चौथा आक्रमण किया।

रुहेला सरदार नजीब खाँ(नजीबुद्दौला)

अहमदशाह अब्दाली ने रुहेला सरदार नजीब खाँ (नजीबुद्दौला) को मीर बख्शी नियुक्त किया।

आलमगीर द्वितीय की हत्या

नजीब की नियुक्ति व उसके सम्राट पर प्रभाव से अप्रसन्न होकर वजीर इतमादुल मुल्क द्वारा (29 नवंबर, 1759 ई. को ) आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी गई।

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शाह आलम द्वितीय (1759-1806 ई.)

शाह आलम द्वितीय कावास्तविक नाम अली गौहर था जो शाह आलम की उपाधि से शासक बना।

शाह आलम द्वितीय का राज्याभिषेक बिहार में हुआ।

इलाहाबाद की सन्धि

शाह आलम द्वितीय ने 1764 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये बक्सर के युद्ध में बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम का साथ दिया। पराजित होने पर शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों से 1765 ई. में इलाहाबाद की सन्धि कर ली व 1772 ई. तक इलाहाबाद में अंग्रेजों का पेंशनर बन कर रहा ।

शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों को बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा की दीवानी का अधिकार दे दिया

महादजी सिंधिया

शाह आलम को 1772 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली की राजगद्दी पर बिठाया ।

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रूहेला सरदार गुलाम कादिर (नजीबुद्दौला का पौत्र)

1788 ई. में रूहेला सरदार गुलाम कादिर (नजीबुद्दौला का पौत्र) ने शाह आलम द्वितीय को अंधा कर दिया व गद्दी से हटाकर बेदार बख्त को सिंहासन पर बैठाया।

शाह आलम द्वितीय की मृत्यु

दिल्ली पर 1803 ई. में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया व शाह आलम अंग्रेजों का कैदी बन गया।

शाह आलम द्वितीय की कैदी के रूप में ही 1806 ई. में मृत्यु हो गई।

पानीपत के तृतीय युद्ध के समय यह दिल्ली का शासक था।

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अकबर द्वितीय (1806-37 ई.)

शाह आलम द्वितीय का पुत्र, अपनी मृत्यु तक अंग्रेजों के संरक्षण में रहा। अंग्रेजों के संरक्षण में रहने वाला प्रथम मुगल बादशाह था

बहादुरशाह द्वितीय (1837-62 ई.)

बहादुरशाह द्वितीय अंतिम मुगल बादशाह था। यह ‘जफर’ उपनाम से शायरी लिखा करता था ।

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1857 ई. की क्रांति

बहादुरशाह द्वितीय  ने 1857 ई. की क्रांति के दौरान विद्रोहियों का नेतृत्व किया। इस कारण अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया।

बहादुरशाह द्वितीय की मृत्यु

बहादुरशाह द्वितीय की रंगून में ही 1862 ई. में मृत्यु हो गई ।

इस प्रकार नाममात्र के मुगल शासक भी समाप्त हो गये क्योंकि अंग्रेजों ने उसके किसी भी उत्तराधिकारी को वैध नहीं माना।

सर जदुनाथ सरकार

सर जदुनाथ सरकार मुगल साम्राज्य के पतन के बारे में इन्होंने – कहा है कि – “जब स्वर्ण को ही जंग लग जाये तो लोहा क्या करेगा।”

इस तरह मुगल साम्राज्य का पतन हो गया।

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