Rao Chunda and Rao Ranmal

राव चूँडाऔर राव रणमल

Rao Chunda and Rao Ranmal

राठौड़ों का प्रथम बड़ा शासक राव चूँडा हुआ, यह राव सीहा के वंशज वीरमदेव का पुत्र था। राव चूँडा ने अपनी सैनिक शक्ति को शक्तिशाली बनाया तथा मण्डौर के किले को जीता। राव चूँडा ने मण्डौर को राठौड़ों की राजधानी बनाया।

राव चूँडा ने अपने राज्य का विस्तार डीड़वाना, नाडौल, नागौर आदि क्षेत्रों तक कर लिया। नागौर के सूबेदार को हराकर (परास्त) कर तुर्की थाने को जीता।

राव चूँडा ने भाई जयसिंह से फलौदी छीन लिया। कुछ समय पश्चात् चुड़ा की शक्ति क्षीण हो गयी। भाटियों ने इससे नागौर छीन लिया तथा चुड़ा स्वयं युद्ध में मारा गया।

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राव रणमल (1427-1438 ई.)

चूँडा का ज्येष्ठ पुत्र होते हुए भी रणमल को कान्हा के पक्ष में अपना राज्याधिकार छोड़ना पड़ा था,  परन्तु वह स्वभाव से  महत्त्वाकांक्षी था।

कुछ समय बाद जब राव रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह लाखा के साथ कर दिया तो राव रणमल के मेवाड़ की राजनीति में प्रभाव बढ़ने के आसार बन गये।   सन् 1421 ई. में लाखा की मृत्यु उपरान्त  उसका पुत्र मोकल मेवाड़ की गद्दी पर बैठा।

मोकल के अल्पवयस्क होने से मेवाड़ के राज्य का सारा प्रबन्ध मोकल का ज्येष्ठ भ्राता चूँडा देखता था। परन्तु हंसाबाई को चूँड़ा पर सन्देह होने लगा, जिससे चूँड़ा माण्डू के सुल्तान होशंग के पास चला गया। इस घटना के बाद मेवाड़ के सभी कामों की देखरेख रणमल ही करने लगा।

राव रणमल ने मेवाड़ का शासन अपने नियंत्रण में ले कर स्वंय  मुखिया  बन गया। और मेवाड़ की सेना लेकर मण्डौर पर आक्रमण किया और सन् 1426 में उसे अपने अधिकार में ले लिया।

महाराणा लाखा के बाद उनके पुत्र मोकल तथा उनके बाद महाराणा कुंभा के अल्पवयस्क काल तक मेवाड़ के शासन की देखरेख रणमल के हाथों में ही रही अधिकार के आवेश में आकर रणमल ने राघवदेव जैसे विश्वास पात्र व्यक्ति की हत्या करवाकर रणमल ने अपने विनाश (पराभव) को निकट बुला लिया।

इसी समय से रणमल के विरुद्ध भी षड़यंत्र रचा गया, जिसके फलस्वरूप 1438 ई. में उसकी हत्या कर दी गयी।

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