Rao Jodha

राव जोधा (1453-1489ई.)

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जब चित्तौड़ में रणमल की हत्या 1438 ई. में हुई तो उसका पुत्र जोधा अपने साथियों के साथ मारवाड़ की ओर चला गया। वह मारवाड़ के पास वाले गाँव काहुँनी में जा पहुँचा।

यहाँ से आगे बढ़कर राव जोधा ने चौकडी के थाने पर हमला किया क्रमशः भाटी बनवीर, वीसलदेव रावल दूदा आदि राणा के सहयोगी भी पराजित होते गये और जोधा की शक्ति बढ़ती गयी।

इधर से राव जोधा ने हंसाबाई के प्रभाव से राणा के वैमनस्य को भी कम करवाया। 1453 ई. में उसने मण्डौर पर धावा बोल दिया जिसमें उसकी विजय हुई।

वीर विनोद और बांकीदास के अनुसार सोजत उसने अपने बड़े भाई के सुपुर्द किया। मेड़ता में उसने अपने पुत्र वीरसिंह को रखा। छापर, द्रोणपुर बोदा के हाथ सौंपा।

राव जोधा ने अपने अधिक उत्साही पुत्र बीका को कांघल और नापा के सहयोग से बीकानेर की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। नैणसी, बांकीदास, दयालदास के अनुसार अपने राज्य की शक्ति को संगठित करने के लिए राव जोधा ने अपने वृहत् राज्य की नयी राजधानी जोधपुर में 1459 ई. में स्थापित की।

नयी राजधानी को सुरक्षित रखने के लिए चिड़ियाटूँक पहाड़ी पर नया दुर्ग भी बनवाया गया जिसे मेहरानगढ़ कहा गया। इन कामों से निश्चिंत होने पर राव जोधा ने काशी, गया और प्रयाग की भी यात्रा की।

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जोधा के उत्तराधिकारी : जोधा के बाद इस काल में उसके दो उत्तराधिकारी राव सातल (1489-1492 ई.) तथा राव सूजा (1492-1515 ई.) हुए, जिन्होंने अपने राठौड़ राज्य को विस्तारित करने का प्रयत्न किया। राव सातल ने अपने नाम से सातलमेर को बसाकर ख्याति अर्जित की।

1490 ई. में अजमेर के हाकिम मल्लूखाँ ने राव सातल के भाई वरसिंह को अजमेर आमन्त्रित किया और वहाँ छल से उसे बन्दी बना लिया। राव सातल ने शीघ्र ही शत्रु का मुकाबला पीपाड़ के पास जाकर किया।

जिसमें मल्लूखाँ को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। राव सातल बहुत अधिक घायल हुआ। 13 मार्च, 1492 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। अपने ज्येष्ठ भाई की मृत्यु के उपरान्त राव सूजा मारवाड़ का स्वामी बना।

वीरम ने मेवाड़ को स्वतन्त्र बनाने में सफलता प्राप्त की। राव बीका ने भी उसके समय में जोधपुर पर चढ़ाई की थी।

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