VEDIC CIVILIZATION वैदिक सभ्यता
VEDIC CIVILIZATION
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वैदिक सभ्यता
सिन्धु सभ्यता के विनाश व पतन के पश्चात् सप्त सिन्धु प्रदेश में आर्यों की एक सभ्यता का विकास हुआ जिसे इतिहास में ‘वैदिक सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है।
आर्य
आर्य शब्द का अर्थ ‘श्रेष्ठ या उत्तम’ है, ऋग्वेद में 36 बार आर्य शब्द का प्रयोग किया गया है।
वैदिक ग्रन्थों में ‘आर्य’ शब्द का प्रयोग जाति के रूप में देखने को नहीं मिलता है किन्तु आर्यों की एक जाति के रूप में परिकल्पना उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा की गई।
हिस्ट्री ऑफ एंशियन्ट इण्डिया
सबसे पहले 1847 ई. में लेसेन नामक विद्वान् ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ एंशियन्ट इण्डिया’ में आर्यों को एक जाति के रूप में सम्बोधित किया।
अब यह माना जाने लगा है कि आर्य शब्द जातिबोधक नहीं है बल्कि ‘आर्य’ शब्द एक भाषा परिवार या भाषा समूह का द्योतक है।
मैक्समूलर, विलियम जोन्स आदि पाश्चात्य विद्वानों की खोज ने यह सिद्ध किया कि ‘आर्य’ शब्द का अभिप्राय भाषा के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
इस दृष्टि से आर्यों का मूल स्थान भारतीय उपमहाद्वीप रहा हो तो अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अब यह धारणा भी बदल रही है कि आर्य भारत में उत्तरी ध्रुव, यूरोप (जर्मनी, दक्षिणी रूस, हंगरी), मध्य एशिया आदि बाहरी देशों से आक्रमणकारी के रूप में आये थे।
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आर्यों का मूल निवास स्थान
आर्य कौन थे ?
उनका मूल निवास स्थान कहाँ था ?
इन विषयों पर विद्वानों में भारी मतभेद है।
यह एक जटिल व विवादास्पद विषय है, जिसका आज तक कोई संतोषजनक अथवा सर्वमान्य उत्तर नहीं मिल पाया है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि आर्यों का मूल निवास-स्थान भारत से बाहर का कोई प्रदेश था व कुछ अन्य विद्वान् भारत को ही आर्यों का जन्मस्थल मानते हैं।
आर्यों के मूल स्थान के संदर्भ में विद्वानों द्वारा अपनी कल्पना- शक्ति, तर्कपूर्ण बुद्धि के बल पर भाषा विज्ञान, पुरातत्त्वों का निरीक्षण तथा जातीय विशेषताओं का गहन अध्ययन करने के पश्चात् विद्वानों ने आर्यों के मूल निवास के सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है
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आर्यों का मूल निवास-उत्तरी ध्रुव
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक ‘आर्कटिक होम इन दी ‘वेदाज’ में यह मत प्रतिपादित किया कि आर्यों का मूल निवास स्थान उत्तरी ध्रुव था।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार लगभग दस हजार वर्ष पूर्व ध्रुव प्रदेश में हिम-प्रलय के कारण आर्यों को उनके स्थान से प्रस्थान करना पड़ा और वे ईरान व भारत में आकर बस गये।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार ऋग्वेद में 6 महीने की रात व 6 महीने के दिन का वर्णन मिलता है, जो उत्तरी ध्रुव के क्षेत्र में ही सम्भव है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का मत कि लगभग 8000 ई.पू. में इनकी एक शाखा ने मध्य एशिया में आकर रहना शुरू कर दिया था।
किन्तु आलोचकों का मानना है कि भारतीय साहित्य में कहीं भी उत्तरी ध्रुव को आर्यों का मूल निवास स्थान नहीं बताया गया है।
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आर्यों का मूल निवास – तिब्बत
स्वामी दयानन्द सरस्वती
वेद एवं आर्य ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर स्वामी दयानन्द सरस्वती ने तिब्बत को आर्यों का आदि देश कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती का मत है कि ऋग्वेद की भौगोलिक परिस्थितियों और तिब्बत की भौगोलिक परिस्थितियों में अत्यधिक साम्य देखने को मिलता है, परन्तु अधिकांश विद्वानों को यह मत मान्य नहीं है।
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आर्यों का मूल निवास — मध्य एशिया
मैक्समूलर, जे.जी. रोहड़, श्लीगन सेअस
इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् मैक्समूलर हैं। इनके अतिरिक्त जे.जी. रोहड़, श्लीगन सेअस इत्यादि विद्वानों ने भी आर्यों का आदि देश मध्य एशिया बताया है।
इन विद्वानों ने वेदों और अवेस्ता को प्रामाणिक आधार माना है, इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि भारतीयों तथा ईरानियों ने बहुत दिनों तक साथ-साथ निवास किया था, अतः निश्चित ही भारत और ईरान के समीप का ही कोई भू-भाग आर्यों का मूल निवास स्थान रहा होगा।
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इन विद्वानों का मानना है कि आर्यों का प्राचीनतम लेख भी एशिया माईनर में बोग़जकोई नामक स्थान से मिला है जिसमें वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं, इनमें मित्र, वरुण, इन्द्र आदि प्रमुख हैं।
इन विद्वानों के अनुसार आर्यों का कोई ग्रन्थ या लेख यूरोप में नहीं मिला है, इसलिए इन लेखों से स्पष्ट है कि प्राचीनतम आर्य एशिया के निवासी थे।
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सेअस
सेअस ने आर्यों का मूल निवास कैस्पियन सागर के निकट बताया हैं।
जे.जी. रोहड़
जे.जी. रोहड़ आर्यों का मूल स्थान बैक्ट्रियाँ मानते हैं।
एडवर्ड मेयर
एडवर्ड मेयर नामक विद्वान् ‘पामीर के पठार’ को आर्यों का मूल स्थान मानते हैं।
इस मत की अनेक विद्वानों ने आलोचना की है, वे इस सम्बन्ध में अपना तर्क देते हैं कि मध्य एशिया आर्यों का मूल निवास होता तो ऋग्वेद में मध्य एशिया का संकेत जरूर होता।
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आयों का मूल निवास — यूरोप
पी. गाइल्स, पेन्का, हर्ट, मच, नेहरिंग, पोकोर्नी इत्यादि विदेशी विद्वानों ने आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप के भिन्न-भिन्न प्रदेशों को माना है।
इन विद्वानों ने भाषा की समानता के आधार पर यूरोप को आर्यों का मूल स्थान बताया है तथा इण्डो-यूरोपियन भाषाओं के शब्द व मुहावरों का यूरोप की भाषाओं से साम्य बताया है।
पी. गाइल्स
पी. गाइल्स आर्यों का मूल स्थान हंगरी या डेन्यूब नदी की घाटी मानते हैं, इस संदर्भ में वे तर्क देते हैं कि आर्य लोग गाय, बैल, घोड़ा, हिरण, कुत्ता आदि पशुओं से परिचित थे।
आर्य लोग गेहूँ, जौ आदि का प्रयोग भी करते थे, ये सभी विशेषतायें हंगरी प्रदेश में उपलब्ध थीं।
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पेन्का
पेन्का ने आर्यों को स्क्रेण्डीनेविया (जर्मनी) का निवासी बताया है। पेन्का ने इस मत का प्रतिपादन रक्त वर्ण और भूरे बालों के आधार पर किया है।
पेन्का के अनुसार आर्यों के भूरे बाल और शारीरिक गठन जर्मनवासियों के समान था।
नेहरिंग
नेहरिंग दक्षिणी रूस को आर्यों का मूल स्थान मानते हैं।
पोकोर्नी
पोकोर्नी नामक विद्वान् भी आर्यों का मूल स्थान रूस को मानते हैं।
डॉ. राजबली पाण्डेय
डॉ. राजबली पाण्डेय के शब्दों में, “भाषा विज्ञान के साक्ष्य कमजोर हैं और खींचतान के साथ उनका उपयोग किसी भी मत के पक्ष में किया जा सकता है।”
उपर्युक्त तर्कों में अनेक विसंगतियाँ हैं, पुरातात्त्विक साक्ष्यों की दृष्टि से दक्षिणी रूस की तुलना में भारत के सप्त सैन्धव प्रदेश में अनेक स्थलों के उत्खनन से ऐसी पूर्व हड़प्पायुगीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं, जिनका तादात्म्य ऋग्वैदिक आर्यों की विशेषताओं के साथ सुगमता से किया जा सकता है।
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आर्यों का मूल निवास – भारत
नवीन अनुसंधानों के प्रकाश में अब यह मत सर्वाधिक मान्य एवं विवेकसम्मत जान पड़ता है कि आर्यों का मूल निवास स्थान भारत ही था।
अधिकांश भारतीय विद्वान् अब इसी मत के समर्थक हैं, यद्यपि विदेशी विद्वान् इस मत को पूरी तरह स्वीकार नहीं करते हैं।
सम्पूर्णानन्द व अविनाश चन्द्र दास
सम्पूर्णानन्द व अविनाश चन्द्र दास ने सप्त सैन्धव को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया है व इस सम्बन्ध में इन्होंने तर्क दिया है कि अवेस्ता और बौद्धिक संहिताओं में खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार सम्बन्धी वर्णन व भौगोलिक सीमाओं के आधार पर आर्यों का निवास सप्त सैन्धव प्रदेश होना निश्चित होता है।
राजबली पाण्डेय
राजबली पाण्डेय आर्यों का मूल स्थान उत्तर प्रदेश और बिहार को मानते हैं।
राजबली पाण्डेय के अनुसार-प्राचीन साहित्य व वेद, परवर्ती संस्कृत साहित्य और पुराणों में सुरक्षित पुरानी परम्परा और इतिहास के अनुसार आर्य लोग इसी देश के मूल निवासी थे।
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एल.डी. कल्ला
एल.डी. कल्ला के अनुसार, “आर्यों का मूल स्थान कश्मीर या हिमालय प्रदेश था।”
गंगानाथ झा
गंगानाथ झा के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान ब्रह्मर्षि देश था, ये अपना तर्क देते हैं कि आर्यों का प्राचीनतम साहित्य भारत में ही मिलता है, यदि वे बाहर से आते तो अपना साहित्य वहाँ अवश्य छोड़कर आते। किन्तु इस मत के विरोध में भी अनेक विद्वानों ने अपने-अपने तर्क दिये हैं।
कीथ
कीथ विद्वान के अनुसार विश्वसनीय प्रमाणों से विभिन्न कल्पनाओं और सिद्धान्तों को बनाना और पुष्ट करना सुगम है, परन्तु इस प्रकार के ढंग के अपनाने पर मात्र एक आपत्ति है, कि अन्य कल्पनायें और सिद्धान्त भी समान रूप से उचित हैं और तथ्य इतने अपूर्ण हैं कि कोई निश्चित निष्कर्ष निकालना कठिन है।”
आयों के मूल निवास के संबंध में निष्कर्ष
उपर्युक्त मतों की विवेचना से यह सिद्ध होता है कि आर्यों के मूल निवास के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
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भारत में आर्यों का आगमन
आर्यों का भारत में आगमन कब हुआ ?
आर्यों का भारत में आगमन के सम्बन्ध में विद्वानों में भारी मतभेद है ।
विद्वानों के मतानुसार सिन्धु सभ्यता के विनाश के बाद ही आर्य सभ्यता का विकास हुआ होगा।
विमलचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, “स्थूल रूप से हम आर्यों के आगमन की तिथि 2500 ई.पू. और 1000 ई.पू. के बीच रख सकते हैं।
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राजबली पाण्डेय ने प्रारम्भिक आर्यों के उदय और प्रसार का काल 5000-3500 ई.पू. बताया है। कई विद्वान् आर्यों का आगमन 1500 ई.पू. मानते हैं।
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